नौकरी छोड़कर सीखी हाई डेंसिंटी फार्मिंग, फिर बनाई कंसल्टेंसी कंपनी

हिमाचल प्रदेश में बागवानी का स्वरूप धीरे धीरे बदलने लगा हैं। पारंपरिक बागवानी को छोड़कर बागवानी की आधुनिक बागवानी की ओर बढऩे लगे हैं। सेब के पुराने बागीचों को हाई डेसिंटी बागीचों मेें परिवर्तित किया जा रहा हैं। हाई डेंसिटी फार्मिंग का क्रेज कोर्पोरेट सेक्टर में नौकरी कर रहे युवाओं को भी अपनी तरफ खींच रहा हैं। अंतराष्ट्रीय स्तर की मैगजीन में काम कर रहे कोटगढ़ के आशीष मेहता ने नौकरी छोड़कर हाई डेंसिंटी फार्मिंग सीखी। अब वह न सिर्फ खुद हाई डेंसिटी फार्मिंग कर रहे हैं, बल्कि प्रदेश के युवा बागवानों को भी हाई डेंसिटी फार्मिंग सीखा रहे हैं। ट्री टैक नाम से वह एक कंसल्टेसी कंपनी भी चला रहे हैं।


आशीष बताते हैं कि वर्ष 2017 के बाद उनका सेब बागवानी के प्रति रूझान बढ़ा। कोटगढ़ क्षेत्र में सेब के बागीचे सबसे पहले तैयार हुए थे। ऐसे मेें कोटगढ़ में लगाए बागीचे वर्ष 2012 के बाद तक समाप्त होने शुरू हो गए थे। फल उत्पादकता भी घट गई थी। वह बताते हैं कि उनके चाचा विदेश जाते थे और विदेशों में सेब उत्पादन के लिए प्रयोग हो रही तकनीकी को देखते व सीखते थे 2017 में उन्होंने कोटगढ़ में हाई डेंसिंटी बागीचा तैयार करने का निर्णय लिया। इस काम में उन्होंने तकनीकी चीज़ो के लिए आशीष से सहायता ली।

आशीष का दावा है कि यह बागीचा प्रदेश का पहला हाई डेंसिटी बागीचा था, जिसे सही तरीके से विकसित किया गया था। इसके बाद आशीष ने भी सेब बागवानी करना शुरू किया। इसके लिए पहले वह इटली गए। वहां से हाई डेंसिटी फार्मिंग सीखी। इसके बाद इन्होंने धीरे धीरे अपने पुराने बागीचें हाई डेंसिटी बागीचे में परिवर्तित किया। अब तक वह पांरपरिक तरीके से तैयार किए गए 40 प्रतिशत बागीचे को हाई डेंसिटी में तैयार कर चुके हैं।

हाई डेंसिटी फार्मिंग के लिए उन्होंने उन्होंने अंतराष्ट्रीय मैगजीन की नौकरी भी छोड़ ली, लेकिन बागवानों को हाई डेंसेंटी फार्मिंग सिखाने के लिए ट्री टैक कंसल्टेंसी कंपनी तैयार की। यह कंपनी प्रदेश के युवा व प्रगतिशील बागवानों को हाई डेंसिंटी बागीचा तैयार करना सिखाती हैं। आशीष बताते हैं कि हाई डेंसिटी के लिए कंसल्टेंसी यानि परामर्श बहुुत जरूरी हैं। क्योकि यह बागवानों के लिए जीवन भर का सवाल हैं। ऐसे में ट्री टैक कंसल्टेंसी कंपनी न सिर्फ बागवानों को हाई डेंसिटी बागीचा तैयार करके देती हैं, बल्कि उस बागीचे कैसे मैनटेन करना हैं यह भी हम सिखाते हैं।

आउटपुट कॉस्ट बढ़ाने की जरूरत

आशीष मेहता कहना है कि सेब बागवानी में साल दर साल इनपुट कास्ॅट बढ़ रही हैं। कार्टन के रेट में भी बढ़ोत्तरी हो रही हैं। इनपुट कास्ॅट घटाने के लिए जहां सरकार को उचित कदम उठाने की जरूरत हैं, तो वहीं बागवानों को इसके लिए उपाए ढूंढने पढ़ेंगे। इनपुट कॉस्ट बढ़ रही हैं तो ऑउटपुट कॉस्ट को कैसे बढ़ाया जा सकता हैं। इस पर विचार करना होगा।

बड़ा लॉट, बड़ा असर
आशीष बताते हैं कि ज्यादात्तर बागवान सेब की नई नई किस्मों के पीछे भाग रहे हैं। हर साल बागवान नई से नई किस्म बागीचें में लगाते हैं। इसके कारण उनके बागीचे म्यूजियम की तरह बनते जा रहे हैं। सेब की हर किस्म तो उपलब्ध हैं, लेकिन किसी भी किस्म का बड़ा लॉट नहीं हैं, जिसके कारण मार्केट में उन्हें कम दाम मिलते हैं। उनका कहना है कि सेब का जितना बड़ा लॉट होगा, उतना ही ज्यादा उसका असर भी होगा।

रेन वाटर हार्वेस्टिंग जरूरी

जलवायु परिवर्तन कृषि व बागवानी को काफी ज्यादा प्रभावित कर रहा हैं। इस बार भी गर्मियों के दौरान ड्राई स्पेल काफी लंबा रहा। ड्राई स्पेल के कारण जमीन में पानी की कमी हो गई थी। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए रेन वाटर हार्वेस्टिंग बहुत जरूरी हैं। आशीष बताते हैं कि बरसात के दिनों में हम बहुत ज्यादा पानी व्यर्थ बहा देते हैं, लेकिन इस पानी को स्टोर करना जरूरी हैं। ताकि सूखे के दौरान इस पानी को प्रयोग किया जा सके।

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