डार्क बैरन गाला के बाद छाया मैमा गाला


डार्क बैरन गाला के बाद अब गाला सीरिज की एक नई वैरायटी ने मंडी में दस्तक दे दी है। इस वैरायटी का नाम मैमा गाला है। बुधवार को ठियोग की पराला मंडी में मैमा गाला ने धमाकेदार एंट्री की। पराला मंडी में मैमा गाला 2 लेयर का एक बॉक्स 2 हजार रुपए में बिका। औसतन एक पूरी पेटी का हिसाब लगाया जाए तो उस हिसाब से 5 हजार रुपए में एक फुल बॉक्स बिका।


दरअसल कोटगढ़ के बागवान कपूर जिस्टू ने मैमा गाला वैरायटी के 29 बॉक्स पराला मंडी में उतारे। मैमा गाला की चमक देखकर आढ़ती फिदा हो गए है और देखते ही देखते 2 लेयर के बॉक्स को 2 हजार रुपए का दाम मिल गया। कपूर जिस्टू का कहना है कि मैमा गाला वैरायटी लोअर एलिवेशन के लिए काफी अच्छी किस्म है। लोअर ऐलिवेशन पर मैमा गाला तैयार कर बागवान अच्छा रिस्पांस पा सकते है। कम ऊंचाई व मैदानी इलाकों में न सिर्फ सेब की फसल तैयार की जा रही हैं, बल्कि मंडियों में उस सेब को अच्छा दाम भी मिल रहा है। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है कोटगढ़ की शमाथला पंचायत के भड़ासा गांव के युवा बागवान कपूर जिस्टू व उनके भाई ने प्रदीप जिस्टू ने।


जिस्टू भाईयो ने पिछले साल ही सेब के 1150 पौधे अल्ट्रा हाईडेंसेटी पर तैयार किए थे और पिछले साल ही फसल भी ले ली थी। वहीं अब इस दूसरी क्रॉप निकाल ली है। सेब के पौधे जमीन में रोपने के बाद फसल लेने के लिए पहले बागवानों को कई सालों तक इंतजार करना पड़ता था, लेकिन बदलते दौर और तकनीक के बढ़ते प्रयोग ने बागवानों के इंतजार को खत्म कर दिया है। अब न सिर्फ एक साल, बल्कि 6 महीनों के अंदर ही सेब के पौधों से बागवान फल ले लिया था।

आईजीएमसी में बतौर सीनियर टेक्निशयन सेवाएं दे रहे कपूर जिस्टू का कहना है कि उन्होंने फरवरी माह में इटली से बनती है। आयातित सेब के फैदर प्लांट खरीदे। पिछले वर्ष 15 फरवरी के करीब इन पौधों को रोप दिया। पिछले वर्ष ही 25 जून को इन पौधों से सेब के बॉक्स सैंपल के तौर पर तैयार किए और नारकंडा में फल मंडी में बेचने के लिए लाया था। वहीं इस बार भी मंडी में जिस्टू भाइयों की सेब ने धूम मचाई है। उनका कहना है कि जिस गांव में उन्होंने सेब तैयार किया है।

वह न सिर्फ कम ऊंचाई पर बल्कि वहां पर गर्मी भी काफी ज्यादा रहती है। इस बार गर्मियों के दौरान अधिकतम तापमान यहां पर 35 डिग्री को पार कर गया था। बागवान कपूर जिस्टू आईजीएमसी में बतौर सीनियर लैब तकनीशियन अपनी सेवाएं दे रहे हैं। ऐसे में बागीचे में वह कम समय बिता पाते हैं, लेकिन गांव में उनके भाई प्रदीप जिस्टू व पिता जय नारायण बागीचों का कामकाज देखते हैं। हालांकि छुट्टियों के दिनों में वह भी बागीचे के काम में अपने पिता का हाथ बटाते हैं। उनका कहना है कि हाईडेनेस्टी फार्मिंग में हालांकि शुरुआत में उत्पादन

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