बागवानों के आंदोलन के समर्थन में आई कंसुमप्टी किसान सभा

हिमाचल किसान सभा क्षेत्रीय कमेटी कसुंपटी ने संयुक्त मोर्चा के आह्वान पर सेब के मुद्दे पर सचिवालय घेराव का समर्थन किया है। क्षेत्रीय कमेटी के सचिव जयशिव ठाकुर ने बताया कि 5 अगस्त को मशोबरा कसुंपटी के सेब और सब्ज़ी उत्पादक प्रदर्शन में शामिल होंगे। उन्होंने कहा कि कसुंपटी क्षेत्र और मशोबरा खण्ड के किसान अभी सब्ज़ी से सेब उत्पादन की तरफ मुड़े हैं। आने वाले समय में सेब यहां के कई परिवारों की आजीविका का साधन होगा। लेकिन सेब उत्पादन में भी सब्जियों की तरह ही अनेक चुनौतियां हैं। उत्पादन लागत इतनी बढ़ गई है कि किसान- बागवान अपने उत्पाद की कीमत भी नहीं वसूल पा रहा। मंडियों में जैसा शोषण सब्ज़ी उत्पादकों का होता है वही हाल सेब उत्पादकों का भी है।


ठाकुर ने कहा कि किसान सेब में न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांग कर रहे हैं। जम्मू – कश्मीर में सेब का ए ग्रेड, बी ग्रेड और सी ग्रेड का सेब 60 रुपए, 44 रुपए और 24 रुपए सरकारी रेट पर खरीदा जा रहा है जबकि हिमाचल में न्यूनतम समर्थन मूल्य मात्र साढ़े दस रुपए है। यह पैसा भी बागवानों को 3-4 साल बाद मिल पाता है। वहीं बागवानी के लिए खरीदे गए उपकरणों की करोड़ों रुपए की आनुदान राशि का भुगतान अभी नहीं हुआ है। ऊपर से पैकेजिंग सामग्री की कीमत, भाड़ा और अन्य खर्चे इतने ज्यादा हो गए हैं कि बागवानों को लागत मूल्य भी वापिस नहीं आ पा रहा। सरकार की ढुलमुल नीति की वजह से किसानों में भारी रोष है और मजबूरन उन्हें आंदोलन का रास्ता इख्तियार करना पड रहा है।


वहीं किसान सभा के राज्य वित्त सचिव सत्यवान पुंडीर ने कहा कि अगर किसानों के दबाव में सेब के लिए समर्थन मूल्य, खाद और स्प्रे में सब्सिडी और पेटियों के दामों में कमी होती है तो हमारी अगली मांग केरल की तर्ज पर सब्जियों के लिए मंडी हस्तक्षेप योजना की मांग उठने के लिए ताकत मिलेगी। उन्होंने जानकारी दी कि सब्जियों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करने वाला केरल देश का पहला राज्य है जहां किसानों को उनकी उत्पादन लागत से 20 प्रतिशत अधिक मूल्य दिया जाता है।

पुंडीर ने बताया कि केरल सरकार 16 सब्जियों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य दे रही है। अगर मंडी में सब्जियों की कीमत कम हो जाती है तो सरकार किसानों से न्यूनतम मूल्य पर सब्जियों की खरीद करती है इसलिए मार्केट में भाव नहीं गिरते और किसानों को उचित दाम मिल पाते हैं। उन्होंने विश्वास जताया कि किसानों का दबाव रहा तो हमारे प्रदेश में भी यह संभव हो सकता है और हर साल सब्जियों में कीमतों के उतार-चढ़ाव से किसानों को राहत मिल सकती है।

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