बर्फबारी फायदेमंद, पूरें होंगे चिलिंग ऑवर, पूनिंग का काम शुरू कर सकते हैं बागवान



हिमाचल के ऊपरी क्षेत्रों में हुई बर्फबारी बागवानों के लिए फायदेमंद है। इससे सेब के फसल के लिए अनिवार्य चिलिंग ऑवर पूरे होने की उम्मीदी है। बागवानी विशेषज्ञ डॉ एसपी भारद्वाज का कहना है कि बर्फबारी से सेब के बागीचों में लगने वाले रोग जैसे वूली एफिड, कैंकर और अन्य रस चूसक रोगों पर प्राकृतिक रूप से नियंत्रण होगा। उन्होंने बताया कि यह बर्फबारी सामयिक है। इससे बागवानों काफी फायदा हो होगा।


डॉ एसपी भारद्वाज बताते हैं, कि वैसे तो सेब के बागीचों में प्रूनिंग करने का सही समय फरवरी माह हैं, लेकिन बागवान अभी भी सेब के बागीचों में प्रूनिंग का काम शुरू कर सकते है। उन्होंने प्रूनिंग के बाद बागवानों को बागीचों में बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करने की सलाह दी है। बोर्डो मिश्रण का छिड़काव करने के लिए बागवान 2 किलो नीला थोथा और 2 किलो चूने को 200 लीटर पानी में मिलाकर घोल तैयार कर सकते है।

डॉ.एसपी भारद्वाज का कहना है कि सेब की फसल के लिए किस्मों के हिसाब से एक हजार से 1400 तक चिलिंग ऑवर पूरे हाने अनिवार्य है। उनका कहना है कि सेब के प्रदेश में न्यूनतत तापमान जब 7 डिग्री से नीचे आता हैं, तो बागीचों में चिलिंग की प्रक्रिया शुरू हुई है। प्रदेश के कई स्थानों में तापमान में गिरावट तो आई हैं, लेकिन आने वाले दिनों में तापमान फिर से चढ़ जाएगा।

मौसम विभाग आने वाले कुछ दिनों तक मौसम के साफ रहने का अनुमान जताया है। ऐसे में जब तक औसतन तापमान 7 डिग्री के आसपास न हो बागीचों में चिलिंग की प्रक्रिया शुरू नहीं होगी। ऐसे में उन्होंने बागवानों को सलाह दी है कि बागीचों में अभी प्रूनिंग का कार्य शुरू न करे। पौधा अभ सुप्तावस्था में नहीं गया है, ऐसे में प्रूूनिंग करने से फायदा नहीं बल्कि नुकसान होगा।

पू्रनिंग के दौरान पौधों को मिलने वाले घाव से जहां पौधा उभर नहीं पाएगा, तो वहीं पौधे में कैकर जैसी वूली एफिड जैसी बीमारियां पनपनी शुरू हो जाएगी। मार्च महीने में जब पौधों में रस संचार होना शुरू होगा, तो पौधा फलों के मिलने वाली शक्ति का प्रयोग घाव को भरने में प्रयोग करेगा। इसका फल के विकास पर भी प्रभाव पड़ेगा और फल की गुणवत्ता अच्छी नहीं बन पाएगी। ऐसे में उन्होंने बागवानों को सलाह दी है कि जनवरी के आखिरी माह और फरवरी माह से ही सेब के बागीचों में प्रूनिंग का काम शुरू करें।

अभी करें यह कार्य

बागवानी विशेषज्ञ डॉ एसपी भारद्वाज का कहना है कि जिन बगीचों में जमीन में 3 से 5 फुट तक नमी है और मिट्टी सख्त नहीं हैं, तो उन बागीचों में बागवान तौलिये बनाने का काम शुरू कर सकते है। इसके अलावा बागवान बागीचों में गोबर की खाद व सुपर फास्फेट की खाद भी डाल सकते है। जिन बागीचों में पिछले साल सुपर फास्फेट की खाद नहीं डाली गई है, उनमें प्रति पौधा दो किला खाद और जिन बागीचों में पिछले वर्ष खाद डाली गइ हैं, उनमें एक किलों खाद प्रति पौधा के हिसाब से डाल सकते है। इसके अलावा कोई भी खाद बागीचों में न डाले।

तौलियों मे मिलाए सूखे पत्ते
सेब की रुपत्तियों को जलाने की बजाए अगर उसे तौलियों में दबा दिया जाए, तो इससे पौधो के लिए जरूरीजैविक आपूर्ति पूरी हो जाएगी। इससे पौधो को कई सूक्ष्म तत्व प्राप्त होगें। साथ ही साथ यह पौधों को कार्बन भी प्रदान करता है। बागवानी विशेषज्ञ डॉ एसपीभारद्वाज का कहना है कि ज्यादातर बागवान सेब की पत्तियों को जला देते हैं। ऐसा करने से पर्यावरण को ही नुकसान होगा। जबकि पत्तियों को दबाने से पौधों के लिए आवश्यक तत्व पूरे हो जाएंगे।

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