पोटाश खाद की कमी झेल रहे हिमाचल प्रदेश के किसानों व बागवानों को इसी हफ्ते पोटाश खाद की सप्लाई मिलेगी। गुजरात के कांदला से हिमाचल प्रदेश के लिए 2600 मीट्रिक टन खाद की सप्लाई निकल चुकी है। ऐसे में इसी हफ्तें में किसानों व बागवानों को पोटाश खाद की सप्लाई मिल सकती है। पोटाश खाद के निर्माण के लिए कच्चे माल की कीमतों में बढ़ोत्तरी के कारण अंतराष्ट्रीय बाजार में पोटाश की कीमतों में बढ़ोत्तरी के कारण भारत में पोटाश खाद की कमी महसूस की जा रही है, जिसके कारण हिमाचल प्रदेश किसानों व बागवानों को दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।
हिमफैड के अध्यक्ष गणेश दत्त का कहना है कि हिमफैड द्वारा इस विषय पर प्रदेश सरकार व केंद्र सरकार से चर्चा कर हिमाचल प्रदेश के लिए 2600 मीट्रिक टन की स्पेशल खेप उपलब्ध करवा दी गई है। यह खेप गुजरात से हिमालच के लिए रवाना हो चुकी है। इसी सप्ताह यह खेप हिमाचल प्रदेश के किसानों बागवानों को उपलब्ध हो जाएगी। उनका कहना है कि अभी भी हिमफैड की विभिन्न डिपुओं में 561 मैट्रिक टन पोटाष उपलब्ध है। अत: हिमफैड सभी किसानों व बागवानों से आग्रह करती है कि वह संयम बनाए रखें उनकी मांग जल्द ही पूरी की जाएगी।
गौरतलब है कि फरवरी का दूसरा व तीसरा सप्ताह येब के बगीचों में पोटाश खाद डालने के लिए सबसे उपयुक्त माना जाता है। ऐसे में पोटाश खाद के लिए बागवानों में मारा मारी है। बाजार में कम मात्रा में पोटाश उपलब्ध होने के कारण किसानों व बागवानों की चिंताए बढ़ी हुई है। विशेषज्ञ की माने तो फसल में एक बार तत्व विशेष के अभाव के लक्षण दिखाई दे जाए, तो आप समझ लीजिए कि फसल की क्षति हो चुकी है जिसका पूरी तरह उपचार सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में पोटाश के प्रयोग से पूरा लाभ नहीं मिलेगा। पौधों में पोटाश की छिपी हुई कमी की दशा में हम देखते हैं कि पोटाश के प्रयोग से स्वस्थ पौधे अपेक्षाकृत बहुत अधिक उपज देते हैं। इसलिये यदि फसल में पोटाश की कमी के लक्षण प्रकट होने तक प्रतीक्षा करेंगे तब तक काफी विलम्ब हो चूका होगा और फसल की रक्षा आप नहीं कर सकेंगे।
पौधा अपना भोजन पोषक तत्व के रूप में ग्रहण करते हैं। फसल द्वारा उपभोग किये गए पोषक तत्वों की क्षति-पूर्ति उर्वरक और खाद द्वारा न करने पर भूमि में तत्व की विशेष कमी हो जाती है और पौधा मरने लगता है। इसलिये फसलों को इन तत्वों को देने की आवश्यकता होती है। सभी पौधों की वृद्धि के लिये कम-से-कम 16 तत्वों की आवश्यकता होती है। इनमें से कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन पानी तथा हवा से प्राप्त होते हैं। अन्य 13 तत्व भूमि, उर्वरक तथा खादों से मिलते हैं।
विभिन्न फसलें एक निश्चित परन्तु भिन्न-भिन्न मात्रा में पोषक तत्वों का अवशोषण करती हैं। मिट्टी में किसी भी पोषक तत्व की कमी हो जाने से पौधों का सही विकास नहीं हो पाता। इसलिये खाद व उर्वरक का उपयोग इस प्रकार से सन्तुलित होना चाहिए ताकि फसल को पर्याप्त मात्रा में सभी आवश्यक पोषक तत्व मिल सकें। इस प्रकार का सुनियोजित उर्वरक प्रयोग, सन्तुलित उर्वरक प्रयोग कहलाता है।
आज के दिन में हिमफैड में 90 मैट्रिक टन कैल्सियम नाईट्रेट उपलब्ध है। यह भी किसानों व बागवानों के लिये अप्रयाप्त है तथा कुछ जगहों पर इसकी कमी ज़्यादा महसूस की जा रही है। कैल्सियम नाईट्रेट की कमी का मुख्य कारण भी इसका कच्चा माल उपलब्ध न होना व अंतराश्ट्रीय बाज़ार में इसकी कीमत का बडऩा है। गुजरात स्टेट फर्टिलाइजऱ एंड कैमिकल्स द्वारा इसकी आपूर्ति हिमफैड में की जा रही थी लेकिन कच्चा माल न उपलब्ध होने के कारण गुजरात स्टेट फर्टिलाइजऱ एंड कैमिकल्स ने इसकी आपूर्ति में बाधा आई है। किसानों व बागवानों की मांगो को मद्देनजऱ रखते हुए यारालीवा और श्रीराम के ब्रैंड की कैल्सियम नाईट्रेट किसानों को उपलब्ध करवाया जा रहा है।